Monday, 5 June 2017

रॉकेट GSLV मार्क -3 लांच, अब अंतरिक्ष में मानव भेज सकेगा भारत

रॉकेट GSLV मार्क -3 लांच, अब अंतरिक्ष में मानव भेज सकेगा भारत

देश के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी मार्क -3 लॉन्च हो चुका है. इस रॉकेट कम्युनिकेशन सेटेलाइट के साथ जीसैट-19 को अंतरिक्ष भेजा गया. चेन्नई से तकरीबन 120 किमी दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से इसने उड़ान भरी. इसरो द्वारा लांच होने वाला जीएसएलवी देश का सबसे भारी रॉकेट है, जो पूरी तरह देश (स्‍वदेशी) में ही बना है. इसमें देश का विकसित क्रायोजोनिक इंजन लगा है. यह रॉकेट संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर अंतरिक्ष में गया है...’’ अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्‍चरों पर निर्भर रहना पड़ता था लेकिन पहली बार देश में इतने वजनी रॉकेट को भेजा जा रहा है.

इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे हैं. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई 13 मंजिली इमारत के बराबर है और चार टन तक के उपग्रह को लांच कर सकता है. इसके सफल लांचिंग से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में भारत का रास्ता साफ हो जायेगा. गौरतलब है कि भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है. इस योजना को शुरू करने वाले पूर्व इसरो चेयरमैन के . कस्तूरीरंगन ने बताया कि इसरो अंतरिक्ष में मानव भेजने की योजना बना चुका है. अगर सरकार की फंडिग मिल जाती है तो वह अंतरिक्ष में दो -तीन सदस्यीय चालक दल को भेजेगा. अमेरिका, रूस , चीन के बाद भारत अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बनेगा. यही नहीं इसका लाभ भारत को डिजिटल इंडिया में भी मिलेगा.

200 हाथियों के बराबर है सैटेलाइट का वजन
आज अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं. ‘‘सही मायने में यह ‘मेड इन इंडिया' उपग्रह डिजिटल भारत को सशक्त करेगा।. भारत में अभी तक सबसे ज्यादा भार ले जाने में सक्षम भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क-तृतीय :जीएसएलवी एमके-3: सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है. इसका वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है.यह भविष्य के भारत का रॉकेट है जो निस्संदेह ‘‘गैगानॉट्स या व्योमैनॉट्स' संभावित नाम के भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाएगा.

जीसैट-19 को पहली बार स्वदेश निर्मित लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया जा रहा है. इन बैटरियों को इसलिए बनाया गया है ताकि भारत की आत्मनिर्भरता को बढाया जा सकें.इसके साथ ही ऐसी बैटरियों का कार और बस जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है.इसरो के अनुसार जीसैट-19, आवेशित कणों की प्रकृति तथा उपग्रहों और उनके इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर अंतरिक्ष विकिरणों के प्रभाव की निगरानी तथा अध्ययन करने के लिए जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्टोमीटर अंतरिक्ष उपकरण ले जाता है.

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