पदोन्नति में आरक्षण पर 5 जजों की संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई
पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट 3 अगस्त को करेगा। केंद्र सरकार सहित चार राज्यों के पदोन्नति में आरक्षण के करीब सौ मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। संविधान पीठ के गठन और तीन अगस्त को सुनवाई करने का फैसला होने से इन सभी मामलों के निपटारे का रास्ता खुल गया है। सर्वोच्च न्यायालय "पदोन्नति में आरक्षण" के 42 से अधिक प्रकरणों में सुनवाई करेगी।
उल्लेखनीय है कि म.प्र. सहित अनेक राज्यों और स्वयं केंद्र शासन के "पदोन्नति में आरक्षण" के विभिन्न प्रकरणों में अलग अलग उच्च न्यायालयों ने सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज प्रकरण में जारी दिशा निर्देशों के प्रकाश में इन पदोन्नति नियमों के अन्तर्गत प्रावधानों को अनुसूचित जाति/ जनजाति को समानता का उल्लघंन करते हुए अतिरिक्त लाभ देने वाला पाया था और नियमों को खारिज कर दिया था। म.प्र., त्रिपुरा, बिहार के प्रकरणों की संयुक्त सुनवाई में एम नागराज प्रकरण में जारी दिशा निर्देशों की एक शर्त जो अनुसूचित जाति/ जनजाति के पिछड़ेपन से संबंधित है के लिए पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने का निर्णय लिया था। इसी पर विचार के लिए 3 अगस्त को संविधान पीठ में सुनवाई होना है। 5 जजों की संविधान पीठ मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में सुनवाई करेगी। पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस कौल एवं जस्टिस इंदु मल्होत्रा होंगी।
प्रमोशन के इन्तजार में हजारों हो गए रिटायर
बता दें कि 30 अप्रैल 2016 के उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक ठहराए जाने और इनके आधार पर गलत पदोन्नत अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवकों को पदौन्नत करने का निर्णय दिया था जिसके खिलाफ मप्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चलो गई और मामले में वर्तमान में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश है| इसके फलस्वरूप पिछले 2 वर्ष से अधिक समय से पदोन्नतियां रुकी हुई हैं, जबकि इस बीच लगभग 50000 सरकारी कर्मचारी अधिकारी बिना पदोन्नति का लाभ पाए सेवानिवृत्त हो चुके हैं और वरिष्ठ खाली पदों पर शासन प्रभार से कार्य करा रहा है।
पदौन्नति में आरक्षण को लेकर प्रदेश में लम्बी लड़ाई चल रही है| अधिकारियो/ कर्मचारियों की संस्था सपाक्स जहां सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के हितों के लिए इस मुद्दे पर संघर्ष कर रही है वहीं सरकार और अजाक्स मिलकर दूसरे पक्ष में हैं। इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से इस स्थिति का कोई सार्थक समाधान जल्दी निकल सकेगा। फिलहाल प्रदेश के अधिकारी कर्मचारियों को फैसले का इन्तजार है|
पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट 3 अगस्त को करेगा। केंद्र सरकार सहित चार राज्यों के पदोन्नति में आरक्षण के करीब सौ मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। संविधान पीठ के गठन और तीन अगस्त को सुनवाई करने का फैसला होने से इन सभी मामलों के निपटारे का रास्ता खुल गया है। सर्वोच्च न्यायालय "पदोन्नति में आरक्षण" के 42 से अधिक प्रकरणों में सुनवाई करेगी।
उल्लेखनीय है कि म.प्र. सहित अनेक राज्यों और स्वयं केंद्र शासन के "पदोन्नति में आरक्षण" के विभिन्न प्रकरणों में अलग अलग उच्च न्यायालयों ने सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज प्रकरण में जारी दिशा निर्देशों के प्रकाश में इन पदोन्नति नियमों के अन्तर्गत प्रावधानों को अनुसूचित जाति/ जनजाति को समानता का उल्लघंन करते हुए अतिरिक्त लाभ देने वाला पाया था और नियमों को खारिज कर दिया था। म.प्र., त्रिपुरा, बिहार के प्रकरणों की संयुक्त सुनवाई में एम नागराज प्रकरण में जारी दिशा निर्देशों की एक शर्त जो अनुसूचित जाति/ जनजाति के पिछड़ेपन से संबंधित है के लिए पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने का निर्णय लिया था। इसी पर विचार के लिए 3 अगस्त को संविधान पीठ में सुनवाई होना है। 5 जजों की संविधान पीठ मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में सुनवाई करेगी। पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस कौल एवं जस्टिस इंदु मल्होत्रा होंगी।
प्रमोशन के इन्तजार में हजारों हो गए रिटायर
बता दें कि 30 अप्रैल 2016 के उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक ठहराए जाने और इनके आधार पर गलत पदोन्नत अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवकों को पदौन्नत करने का निर्णय दिया था जिसके खिलाफ मप्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चलो गई और मामले में वर्तमान में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश है| इसके फलस्वरूप पिछले 2 वर्ष से अधिक समय से पदोन्नतियां रुकी हुई हैं, जबकि इस बीच लगभग 50000 सरकारी कर्मचारी अधिकारी बिना पदोन्नति का लाभ पाए सेवानिवृत्त हो चुके हैं और वरिष्ठ खाली पदों पर शासन प्रभार से कार्य करा रहा है।
पदौन्नति में आरक्षण को लेकर प्रदेश में लम्बी लड़ाई चल रही है| अधिकारियो/ कर्मचारियों की संस्था सपाक्स जहां सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के हितों के लिए इस मुद्दे पर संघर्ष कर रही है वहीं सरकार और अजाक्स मिलकर दूसरे पक्ष में हैं। इस मामले पर सुनवाई शुरू होने से इस स्थिति का कोई सार्थक समाधान जल्दी निकल सकेगा। फिलहाल प्रदेश के अधिकारी कर्मचारियों को फैसले का इन्तजार है|
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