Tuesday, 19 June 2018

हाई कोर्ट ने नीना वर्मा के खिलाफ याचिका को खारिज किया और गौतम पर लगाया एक लाख का जुर्माना


हाई कोर्ट ने नीना वर्मा के खिलाफ याचिका को खारिज किया और गौतम पर लगाया एक लाख का जुर्माना

धार विधायक नीना वर्मा के खिलाफ हाई कोर्ट में दायर चुनाव याचिका सोमवार को खारिज कर दी गई। कोर्ट ने माना कि चुनाव हारने के बाद याचिकाकर्ता ने खुद को जनता की नजर में बनाए रखने के लिए याचिका दायर की थी। जिन बिंदुओं पर यह दायर की गई, उसमें से किसी को वे साबित नहीं कर सके। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए हर्जाना भी लगाया। यह राशि एक माह में जमा करना होगी।
वर्मा के खिलाफ यह याचिका बालमुकुंद गौतम ने दायर की थी। इसमें उन्होंने वर्मा पर चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया था। याचिका में नीना वर्मा की तरफ से सीनियर एडवोकेट चंपालाल यादव, ओमप्रकाश सोलंकी और अजय लोनकर ने पैरवी की, जबकि याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट आनंदमोहन माथुर और अभिनव नोतकर ने पक्ष रखा। 8 मार्च 2018 को दोनों पक्षों की बहस खत्म हो गई थी। इसे सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सोलंकी ने बताया कि कोर्ट ने फैसले में माना कि यह याचिका पराजित उम्मीदवार गौतम ने केवल जनता में अपनी छवि बरकरार रखने के उद्देश्य से प्रस्तुत की थी, इसका कोई वैधानिक आधार नहीं था। इससे न केवल न्यायालय का समय खराब हुआ, बल्कि प्रतिप्रार्थी को भी अनावश्यक रूप से परेशान होना पड़ा। कोर्ट ने इस आधार पर याचिकाकर्ता पर हर्जाना लगाया है।
याचिका में ये लगाए थे आरोप
- चुनाव प्रचार के दौरान हुई सभाओं में वक्ताओं ने मतदाताओं को लुभावने भाषण दिए, इससे आचार संहिता का उल्लंघन हुआ।
- भाजपा के राष्ट्रीय नेता राजनाथ सिंह की 13 नवंबर 2013 को सभा हुई थी। धार के राजवाड़ा चौक पर हुई इस आमसभा में नीना वर्मा के पक्ष में पूर्व विधायक विक्रम वर्मा और एक अन्य नेता अशोक जैन ने भ्रष्ट आचरण करते हुए भाषण दिया।
- वर्मा और जैन ने कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के खिलाफ भी आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
- 17 नवंबर 2013 को भाजपा कार्यालय पर कार्यकर्ताओं की बैठक में भी इसी तरह का भ्रष्ट आचरण किया गया।
स्वीकार हो चुकी है पहली याचिका
नीना वर्मा के खिलाफ दो चुनाव याचिकाएं दायर हुई थीं। एक धार निवासी सुरेश भंडारी ने दायर की थी, जबकि दूसरी बालमुकुंद गौतम ने। नवंबर 2017 में हाई कोर्ट ने भंडारी की चुनाव याचिका स्वीकारते हुए वर्मा का निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे कर दिया। इस याचिका में वर्मा पर चुनाव के नामांकन फॉर्म में गलत और अधूरी जानकारी देने का आरोप था, जिसे कोर्ट ने सही माना था।

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