मध्य
प्रदेश में बसपा के ऐलान के बाद संकट में कांग्रेस की विपक्षी एकता की बुनियाद,
भारतीय
जनता पार्टी और एनडीए के खिलाफ विपक्ष के गठबंधन की कोशिशों को उस वक्त एक और बड़ा
झटका लगा, जब
मायावती की पार्टी बसपा ने मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात की.
हालांकि दोनों ही दलों के नेता बता रहे हैं कि बातचीत अभी शुरुआती स्तर पर है और
समझौता हो जाएगा. लेकिन दोनों ही पार्टियां अभी अपने पत्ते नहीं खोल रही.
दरअसल,
खबर है कि मध्य
प्रदेश में बीएसपी 230
सीटों पर लड़ने की बात कर रही है. कांग्रेस के लिए ये झटके से कम नहीं है. हालांकि
बीएसपी के बड़े नेता फिलहाल चुप हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि ये अधिकतम सीटें
हासिल करने के लिए दबाव की राजनीति है. सूत्र बताते हैं कि बीएसपी चाहती है कि उसे
30
सीट मिले. वहीं, कांग्रेस
14-15
सीटें देना चाहती है. बताया ये भी जा रहा है कि समाजवादी पार्टी भी 10 सीट से कम पर नहीं मानेगी. वहीं,
गोंडवाना
गणतंत्र पार्टी को भी कुछ सीटें देनी होंगी.
मध्य
प्रदेश : बीजेपी के 'साइबर
वारियर्स' बनाम
कांग्रेस के 'राजीव
के सिपाही', पहली
बार होगा ऐसा चुनाव
लेकिन
कांग्रेस को एहसास है कि 15 साल की बीजेपी की सत्ता उखाड़ने की मुहिम में
बीएसपी का साथ ज़रूरी है. दरअसल कांग्रेस और बीएसपी मिल कर बीजेपी को कड़ी टक्कर दे
सकती है क्योंकि दोनों को कुल मिलने वाले वोट बीजेपी के आसपास ही जाकर ठहरता
है.कांग्रेस बीएसपी की खींचतान पर बीजेपी चुटकी ले रही है.
बीजेपी नेता राहुल कोठारी का कहना है कि 'हो सकता है कि बीएसपी को लग गया हो कि
कांग्रेस के साथ जाने पर दुर्गति होने वाली है... वैसे भी एसपी बीएसपी बाग़ियों का
भविष्य तय करती है...'
उधर
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 साल से सत्ता पर काबिज़ हैं. ऐसे में कांग्रेस
सत्ता विरोधी लहर के सहारे अपने मंसूबे बांध रही है. लेकिन कांग्रेस-बीएसपी गठबंधन
नहीं होता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा. क्योंकि इस साल के अंत में
चुनाव होने हैं, अगर
मध्य प्रदेश में अगर कांग्रेस-बसपा साथ नहीं आती है तो राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी
एकता की अवधारणा को भी गहरा धक्का लगेगा और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर
देना इतना आसान नहीं रह जाएगा.
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