किसानों तक इन वजहों से मोदी सरकार ने बढ़ाया न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं पहुंचेगा
मोदी सरकार ने 2019 के आम चुनावों से पहले किसानों का दिल जीतने के लिए खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया है। लेकिन सरकार के इस कदम का फायदा किसानों को मिलता नहीं दिख रहा है। किसानों की फसल को खरीदने के लिए फंड और रखने के लिए स्टोरेज की कमी सरकार के इस फैसले को धरातल पर उतारने के सामने सबसे बड़ी बाधा है। आपको बता दें कि बुधवार को मोदी सरकार ने अपने चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में धान सहित खरीफ की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की घोषणा की थी।
मोदी सरकार के शुरुआती चार सालों में 3-4 फीसदी बढ़े न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस साल औसतन 25 फीसदी की वृद्धि की गई। इससे सरकार ने जहां 2014 के अपने चुनावी वादे को पूरा करने का दावा किया वहीं 2019 के चुनावों पर भी निशाना साधा, जिसे मोदी के लिए पिछली बार की तुलना में ज्यादा कठिन समझा जा रहा है। हालांकि सरकार ने अधिकतर फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा कर बेंचमार्क तो सेट किया है लेकिन राज्य की एजेंसियां इस कीमत पर मुख्य तौर पर सीमित मात्रा में गेहूं और धान की ही खरीदारी करती हैं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक कई स्टडीज की मानें तो इस तरह से यह फायदा 26 करोड़ से अधिक देश के किसानों में से केवल 7 फीसदी के करीब तक सिमट कर रह जाता है। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि इसे पूरी तरह से लागू करना काफी खर्चीला काम है। सरकार के लिए यह और चुनौतीपूर्ण इसलिए है क्योंकि उसने इस वर्तमान साल के राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य बनाया है। तेल की बढ़ती कीमतों से यह लक्ष्य वैसे ही कठिन बना हुआ है।
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिन्च के इंडिया इक्विटी स्ट्रैटिजिस्ट संजय मुकीम का कहना है कि इस तरह के दबाव में फंडिंग कर सरकार कृषि उत्पादों की खरीद का दायरा नहीं बढ़ा सकती। उनके मुताबिक अगर ऐसा हो भी गया तो इस खरीद को रखने के लिए स्टोरेज उपलब्ध नहीं है और इसे 2-3 महीनों में तैयार भी नहीं किया जा सकता। सरकार ने कहा है कि इस साल सीमित खरीदारी भई उसे करीब 150 अरब रुपये की पड़ेगी लेकिन एक्सपर्ट्स की राय अलग है। इंडस्ट्री ऑफिशल्स का कहना है कि वास्तविक खर्च का आकलन मुश्किल है।
मोदी सरकार ने 2019 के आम चुनावों से पहले किसानों का दिल जीतने के लिए खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया है। लेकिन सरकार के इस कदम का फायदा किसानों को मिलता नहीं दिख रहा है। किसानों की फसल को खरीदने के लिए फंड और रखने के लिए स्टोरेज की कमी सरकार के इस फैसले को धरातल पर उतारने के सामने सबसे बड़ी बाधा है। आपको बता दें कि बुधवार को मोदी सरकार ने अपने चुनावी वादे को पूरा करने की दिशा में धान सहित खरीफ की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की घोषणा की थी।
मोदी सरकार के शुरुआती चार सालों में 3-4 फीसदी बढ़े न्यूनतम समर्थन मूल्य में इस साल औसतन 25 फीसदी की वृद्धि की गई। इससे सरकार ने जहां 2014 के अपने चुनावी वादे को पूरा करने का दावा किया वहीं 2019 के चुनावों पर भी निशाना साधा, जिसे मोदी के लिए पिछली बार की तुलना में ज्यादा कठिन समझा जा रहा है। हालांकि सरकार ने अधिकतर फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा कर बेंचमार्क तो सेट किया है लेकिन राज्य की एजेंसियां इस कीमत पर मुख्य तौर पर सीमित मात्रा में गेहूं और धान की ही खरीदारी करती हैं।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक कई स्टडीज की मानें तो इस तरह से यह फायदा 26 करोड़ से अधिक देश के किसानों में से केवल 7 फीसदी के करीब तक सिमट कर रह जाता है। आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि इसे पूरी तरह से लागू करना काफी खर्चीला काम है। सरकार के लिए यह और चुनौतीपूर्ण इसलिए है क्योंकि उसने इस वर्तमान साल के राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य बनाया है। तेल की बढ़ती कीमतों से यह लक्ष्य वैसे ही कठिन बना हुआ है।
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिन्च के इंडिया इक्विटी स्ट्रैटिजिस्ट संजय मुकीम का कहना है कि इस तरह के दबाव में फंडिंग कर सरकार कृषि उत्पादों की खरीद का दायरा नहीं बढ़ा सकती। उनके मुताबिक अगर ऐसा हो भी गया तो इस खरीद को रखने के लिए स्टोरेज उपलब्ध नहीं है और इसे 2-3 महीनों में तैयार भी नहीं किया जा सकता। सरकार ने कहा है कि इस साल सीमित खरीदारी भई उसे करीब 150 अरब रुपये की पड़ेगी लेकिन एक्सपर्ट्स की राय अलग है। इंडस्ट्री ऑफिशल्स का कहना है कि वास्तविक खर्च का आकलन मुश्किल है।
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