संसद
में पास हुआ SBI से
जुड़ा बिल, 5 बैंकों
के विलय को मंजूरी
स्टेट
बैंक (निरसन और संशोधन) विधेयक 2017 बुधवार को राज्यसभा से पारित कर दिया गया. इस
विधेयक में एसबीआई के पांच बैंकों को भारतीय स्टेट बैंक में विलय का प्रावधान है.
वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने पेश किया और इसके बाद इसपर विस्तार से
चर्चा की गई. मंत्री ने विलय के फायदे गिनाते हुए कहा कि इससे लागत को कम कर बैंक
की लाभप्रदता बढ़ाने और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने में मदद मिलेगी.
बैंकों
में नहीं हुई छंटनी
शिवप्रताप
शुक्ल ने सरकार ने साफ किया कि इस विलय के बाद सरकार किसी भी कर्मचारी की छंटनी
नहीं की गई है. वित्त मंत्री के जवाब के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित
कर दिया. लोकसभा इस विधेयक को पहले ही मंजूरी दे चुकी है. स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर
एंड जयपुर, स्टेट
बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट
बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट
बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर का पिछले वर्ष अप्रैल में एसबीआई में
विलय हुआ था.
अब
इस विधेयक में इस विलय को पूर्व प्रभाव से मंजूरी दी गयी है. इस विलय के बाद
एसबीआई के ग्राहकों की संख्या 37 करोड़ तक पहुंच गई है. विधेयक पर हुई चर्चा के
दौरान कांग्रेस के जयराम रमेश सहित कुछ सदस्यों ने एसबीआई के निजीकरण को लेकर
आशंका जताई. कई सदस्यों ने बैंकों के नियमन एवं निगरानी प्रणाली को दुरूस्त बनाये
जाने की आवश्यकता पर बल दिया.
बेहतर
होंगी सुविधाएं
इस
पर वित्त राज्यमंत्री शुक्ल ने कहा कि इन सब्सिडियरी बैंकों के विलय के बाद कोई
छंटनी नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि विलय के बाद कुछ कर्मचारी रिटायर जरूर हुए
हैं. उन्होंने कहा कि इन पांचों बैंकों के विलय के पीछे यही उद्देश्य है कि इनकी
लाभप्रदता बढ़े और इनकी सुविधाएं बेहतर हो सकें. उन्होंने कहा कि इस विलय से इन
बैंकों की लागत में कमी आयेगी और संसाधनों के उपयोग को युक्तिसंगत बनाया जा सकेगा.
SBI पर
बढ़ेगा बोझ
इससे
पहले चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने पिछले वित्त वर्ष की अंतिम
तिमाही में एसबीआई को हुए घाटे पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि एसबीआई भारत का
पांचवां सबसे बड़ा नियोक्ता है जो वर्तमान में 2 लाख 70 हजार लोगों को नौकरी दे रहा है.
उन्होंने कहा कि विलय के बाद कर्मचारियों की छंटनी नहीं होनी चाहिए. साथ ही जयराम
रमेश ने सरकार से यह भी स्पष्ट करने को कहा कि क्या एसबीआई का निजीकरण करना और
सरकारी बैंकों का गैर राजनीतिकरण करना उसके एजेंडे में है?
सीपीआई
सांसद डी राजा ने कहा कि विलय से पहले बताया गया था कि इससे एसबीआई विश्वस्तरीय
बैंक बन जाएगा लेकिन हुआ इसके विपरीत है. उन्होंने कहा कि एसबीआई का घाटा बढ़ा है,
एनपीए लगातार
बढ़ रहा है साथ में कई शाखाओं को बंद भी करना पड़ा. राजा ने कहा कि सब्सिडियरी काफी
अच्छा कर रहे थे और इस विलय से कोई फायदा नहीं है.
जल्दबाजी
में लिया फैसला
डी
राजा ने कहा कि इस विलय ने हमने अपने क्षेत्रीय बैंकों को खो दिया है. राजा ने कहा
कि सरकार ने पहले जल्दबाजी में फैसला लिया, कोई सहमति नहीं बनाई और अब बिल को सदन
में पारित कराना चाहती है. ऐसा जीएसटी और नोटबंदी के दौरार पहले भी किया जा चुका
है.
बीजेपी
के रामकुमार वर्मा ने कहा कि बैंकों के विलय होने से लागत में कमी आती है. इससे
अंतत ब्याज दरों में कमी आने पर ग्राहकों को ही लाभ मिलता है. उन्होंने कहा कि
पांच बैंकों के विलय के बाद इनकी कोई भी शाखा बंद नहीं की गई है. टीएमसी सांसद
सुखेन्दु शेखर राय ने कहा कि चूंकि इन पांचों बैंकों का विलय संसद में इस विधेयक
पर चर्चा से पहले ही हो चुका है, इसलिए सदस्यों के पास इस बारे में कहने पर कुछ
अधिक नहीं है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि ग्राहकों को मिलने वाली सेवाओं में
किसी तरह की कटौती नहीं होनी चाहिए.
विलय
समस्या का हल नहीं
जेडीयू
सांसद हरिवंश ने बैंकों में कुछ लोगों के कर्ज लेकर विदेशों में भाग जाने की
घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी बैंकिंग प्रणाली में अनिर्णय और राजनीतिक
हस्तक्षेप की संस्कृति बहुत लम्बे समय से चली रही है. उन्होंने कहा कि बैंकिंग
प्रणाली में विलय ही हर समस्या का उपचार नहीं हो सकता. विधेयक पर हुई चर्चा में
शिवसेना के अनिल देसाई, कांग्रेस
के मधुसूदन मिस्त्री, बीजेपी
के सत्यनारायण जटिया, महेश
पोद्दार और अनिल अग्रवाल, सपा के विशंभर प्रसाद निषाद, एआईएडीएमके की विजिला सत्यनाथ और
सीपीएम के के. के. रागेश ने अपने विचार रखे.
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