Thursday, 14 December 2017

सोनिया ने यूं पहुंचाया कांग्रेस को फर्श से अर्श तक, कभी नहीं थी राजनीति में आने की इच्‍छा



सोनिया ने यूं पहुंचाया कांग्रेस को फर्श से अर्श तक, कभी नहीं थी राजनीति में आने की इच्‍छा



भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। इतालवी मूल की होने के बावजूद सोनिया ने यहां राजनीतिक सफलता की बुलंदियों को छुआ और एक वक्‍त में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की पर्याय बन गईं। हालांकि वह शुरुआत में राजनीति से जुड़ने को लेकर अनिच्‍छुक थीं, लेकिन जब वह एक बार कांग्रेस से जुड़ गईं और पार्टी की कमान थाम ली तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह कांग्रेस अध्‍यक्ष पद पर सर्वाधिक समय तक रहीं और उनके अध्‍यक्ष रहते हुए पार्टी ने लगातार दो बार साल 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीत कर सहयोगी दलों के साथ मिलकर केंद्र में गठबंधन सरकार बनाई।
सोनिया 1998 में बनी थीं कांग्रेस अध्‍यक्ष
सोनिया (70) साल 1998 में कांग्रेस अध्‍यक्ष चुनी गई थीं और 19 साल बाद उन्‍होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए यह पद खाली किया। राहुल साल 2013 में कांग्रेस के उपाध्‍यक्ष बने थे। उनके नेतृत्‍व में कांग्रेस के संगठनात्‍मक ढांचे और भविष्‍य को लेकर पार्टी की रणनीतियों में बड़े फेरबदल की उम्‍मीद की जा रही है, पर वर्ष 2014 के आम चुनाव में पार्टी की हार से पहले तक सोनिया के नेतृत्‍व में इसकी सफलता और खुद सोनिया का राजनीतिक सफर भी कम दिलचस्‍प नहीं है।
काफी समय तक सक्रिय राजनीति से दूर रहीं
एंटोनिया एडविगे अल्बानिया माइनो के रूप में वर्ष 1946 में इटली में जन्‍म लेने वाली सोनिया गांधी का भारत में राजनीतिक सफर किसी बॉलीवुड फिल्‍म की पटकथा से कम नहीं है। सोनिया साल 1984 से पति राजीव गांधी के साथ चुनावी रैलियों में हिस्‍सा लेने लगी थीं। लेकिन वह काफी समय तक सक्रिय राजनीति से दूर रहीं। 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्‍या के बाद उनसे कांग्रेस की कमान थामने और सरकार बनाने तक की अपील की गई, लेकिन तब भी उन्‍होंने इससे दूरी बनाए रखी। वह साल 1996 तक पार्टी से दूर रहीं। यह वह दौर था, जब कांग्रेस को सबसे अधिक नुकसान हुआ था। सालों बाद वह 1997 में सक्रिय राजनीति से जुड़ने को लेकर खुद को मना पाईं।
विदेशी मूल का होना बना बड़ा मुद्दा
शुरुआती अनिच्‍छाओं के बावजूद पार्टी की प्राथमिक सदस्‍यता लेने के 62 दिनों के भीतर वह कांग्रेस की अध्‍यक्ष बन गईं। हालांकि यह राह उनके लिए इतनी आसान नहीं थी और उनका विदेशी मूल का होना एक बड़ा मुद्दा बन गया। इसी वजह से सोनिया गांधी 2004 और 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस की लगतार दो बड़ी जीतों के बावजूद प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं। हालांकि सोनिया के राजनीतिक सफर में यह एक बड़ी अड़चन साबित हुई, लेकिन इसने उनके हौसलों को कभी पस्‍त नहीं होने दिया। उनके नेतृत्‍व में कांग्रेस ने साल 2004 का आम चुनाव जीता और घटक दलों के साथ मिलकर युनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (UPA) सरकार बनाई। सोनिया के नेतृत्‍व में कांग्रेस की लंबे समय बाद केंद्र की सत्‍ता में वापसी हुई, लेकिन दुर्भाग्‍यवश सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं। वह अपने विदेशी मूल के होने को लेकर विपक्षी दलों के तीखे हमलों से वाकिफ थीं और शायद इसलिए उन्‍होंने खुद प्रधानमंत्री नहीं बनकर कुछ ऐसा करने का फैसला किया कि वह कांग्रेस पर अपनी पकड़ कायम रख सकें। उन्‍होंने प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी के वरिष्‍ठ नेता व पूर्व केंद्रीय वित्‍त मंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह को चुना। इसके बाद UPA सरकार के कार्यकाल के दौरान इस तरह के आरोप कई बार लगे कि सरकार का संचा‍लन वास्‍तव में गांधी परिवार ही करता रहा और मनमोहन सिंह तो मात्र 'कठपुतली प्रधानमंत्री' रहे।
कांग्रेस ही नहीं, UPA सरकार में भी रही अहम भूमिका
इन तमाम विवादों के बावजूद हालांकि भारतीय राजनीति में सोनिया के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के बहुत से नेता मानते हैं कि उनके अनवरत प्रयास की बदौलत ही पार्टी को एक बार फिर उठ खड़ा होने में मदद मिली। पार्टी को स्थिरता देने के साथ-साथ सोनिया ने  UPA की अध्‍यक्ष के तौर पर सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को मूर्त रूप देने में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

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